शनिवार, 25 मई 2013

छत्‍तीसगढ में जो हुआ वह तो सही नहीं कहा जा सकता पर हालात यह हो गए हैं कि हर दिल के कोने में चुपके से एक नक्‍सली आकर बैठ गया है अभी यह नक्‍सली ज्‍यादातर अकेले में या सोच में ही हमला कर रहा है वह दिन दूर नहीं जब यह भी दंतेवाडा या गढचिरौली की तरह गुरिल्‍ला हमले करने लगेगा देश के हालात देखें तो कानून का डंडा गरीबों के लिए और इसके प्रिविलेज अमीरों के साधन बन रहे हैं भ्रष्‍टाचारी व रसूखदारों का कॉकस बन गया है वे इनके दोषों पर कुछ नहीं बोलते ये उनकी कमियों को न‍जरअंदाज कर देते हैं पैसे वाले आम लोगों का इस्‍तेमाल सर्कस के जानवरों की तरह करने लगे हैं आईपीएल गरीब व उत्‍साही युवाओं को क्रिकेट के बहाने सर्कस में इस्‍तेमाल करने जैसा ही है रईसों की बीबीयों और कुछ रईसों की शाम को रंगीन बनाने के अलावा देश को आईपीएल से क्‍या मिल रहा है पूरे देश के रईस घोडों की तरह क्रिकेटरों के खेल पर दांव लगा रहे है क्रिकेटर जब तक दौड रहा तब तक उसकी कीमत लग रही है फेल होते ही बूढे घोडे की तरह फायर्ड हर क्षेत्र में हालात ऐसे ही हैं सरकारें सडक बनाने की घोषणा तब करती हैं जब उसके दोनों ओर की जमीनें नेता औनेपौने दामों पर खरीद लेते है आम आदमी जब हकीकत जानता है तो उसके अंदर का नक्‍सली उबलता है गुस्‍साता कई बार तोडफोड भी मचाता है और इसका शिकार अनेकों बार उसका खुद का परिवार बन जाता है अब तो डर लगने लगा है अपने अंदर के नक्‍सली से

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

जिनके साथ बंदूकें चलानी हैं उनके संग क्रिकेट खेलने का क्या मजा


पाकिस्तान की करतूत पर पूरे देश में भारी गुस्सा है। हमारे कई रक्षा विशेषज्ञ बिलों से बाहर आ गए हैं। कई दलीलें दी जा रही हैं। इसके बावजूद यह कोई नहीं देख रहा कि वे क्या वजहें हैं जिनकी वजह से पाकिस्तान के हौसले इतने बढ गए हैं। देखा जाए तो इसके पीछे भारतीय सीमा रक्षक बल की बुझदिली नजर आ रही है। क्या हमारे जवानों ने चूडियां पहनी हुई थीं, जो पाकिस्तानी आए और दो जवानों का सिर काट कर ले गए। हमारे जवानों के खून की गरमी क्या खत्म हो गई है। पाकिस्ता‍न को ईंट का जवाब पत्थर से देते। दो के बदले दस के सिर क्यों नहीं काट डाले। वो हमारी सीमा में घुस सकते हैं तो क्या हम नहीं। यह मौका हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने का नहीं है। दम दिखाने का है और यह दम दिखाना होगा देश की सैन्य‍ व राजनीतिक लीडरशप को। तैयारी करनी होगी इस्लामाबाद पर तिरंगा फहराने की। यह नहीं होता तो कम से कम अपने पूरे कश्मीनर को तो वापस ले लो। कुछ नहीं किया तो वे काट लेंगे उन सिरों को जो आज दिल्ली में झुके हुए हैं। संसद तक पहुंचने का हौसला वे दिखा चुके हैं। ऐसा करने वाले जेलों में वीआईपी बने हुए हैं। बहुत हो चुकी बातचीत। सब बंद कर दो। आना जाना खाना पीना ऐसे मुल्क के साथ जो बस दुश्मनी की ही भाषा जानता हो। जिनके साथ बंदूकें चलानी हैं उनके संग क्रिकेट खेलने का क्या मजा।

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

चेहरे बदलते नेता, चोला बदलते नेता
मिलते हैं हर गली में हर नुक्‍कड पर
गिरा हुआ नेता, बेइमान नेता
मिलता है हर सडक पर हर दल में
इमानदार नेता, चरिञवान नेता
न घर पर न दर पर